Sunday, December 2, 2007

ramram

sabhi ko ram-ram. naye-naye aye hein . dekhen apni bhasha mein kaisechalega

3 comments:

अजित वडनेरकर said...

अजी पहचानेंगे कैसे नहीं और फिर मानेंगे कैसे नहीं। वाह अखिल भैया, इस सिलसिले की सबसे नायाब चिट्ठी तो आपकी ही आई है।
तो क्या बरसों पहले जो एक जापान यात्रा थी वह तब वहीं बस जाने में बदल गई थी ?
एक उंगली का उल्लेख क्यो ? चोट लगी है या इससे अधिक कुछ ?
जल्दी बताइये, फिक्र् है।
अपने विद्यार्थी काल से पाले हुए शौक को पूरा करने का अवसर ब्लाग ने दिया है। कई बेहतरीन रिश्ते भी बने है जो मुझसे बेहतर काम करवाने की ख्वाहिश रखते हैं। कर रहा हूं , जैसा भी है , ये नितांत मेरा है। सबको पसंद है तो बढ़िया ....
आपने अपने ब्लाग पर अब तक कुछ नहीं लिखा है। कोई खास वजह ? जबकि ये तो मेरे ब्लाग से भी पुराना है। ईमेल भी नही दिया हुआ है।
कृपया इस पहल को आगे बढ़ाएं।
सादर, साभार
अजित

अजित वडनेरकर said...

ये हुई न बात!
बधाई ले लीजिए नवसंवत्सर की। उगते सूरज के देश की संस्कृति को समझने का अवसर लगातार उपलब्ध कराते रहें। कुछ तस्वीरें भेजता हूं आपको परिजनों की।

democracybachaao said...

ram-ram bhai. yeh kaam tumne bahut acha kiya.kal hi main aur ishhan bhi apna blog suru karne ki charcha kar rahe the. acha laga ki pehel ghar se hi hogayi.ab toh samay-samay par dimag aur ungaliyon ko kasht dena hi padega.toh phir jamegi khoob matribhasa ki chaupal.
ram-ram sahit tumhara bhai, munnoo