Sunday, April 6, 2008

नवसंवत्सर

नवसंवत्सर पे सभी बंधुओं को राम-राम
चैत्र प्रतिपदा का यह दिन शुभ और मंगल लाये बस यही कामना है
आजकल जहाँ का पड़ाव है वहाँ का पारंपरिक नववर्ष बड़ा अनूठा है।
आमतौर पर जापान में कैलेंडर से चलें तो सम्राट के राजगद्दी पर आसीन होने के दिन से कैलंडर आरंभ होता है। जैसे आजकल बीसवां वर्ष चल रहा है।
परन्तु जापान में नव वर्ष का उत्सव पहली जनवरी को ही मनाया जाता है। अपने देश से तुलना करें तो कह सकते हैं कि यह दीपावली जितना बड़ा पर्व है । घर क्या दफ्तर, दुकान सबकी सफ़ाई, रंगाईपुताई, सजावट , नए
कपड़े, नया खानापान , सब कुछ नया हो जाता । जी हाँ यहाँ पर्व में सुरापान का भी बड़ा महत्व है।

पहली जनवरी से चार पाँच दिन तक हर मन्दिर में गरमागरम ओसाके पीने का आनंद मिलता है तो लगता है जैसे शिवरात्रि में अपने हरिद्वार के बिल्वाकैश्वर महादेव के मन्दिर में चढाई गई ठंडाई का स्वाद आ गया हो। सजावट में सबसे अधिक ज़ोर दीर्घ आनंद , दीर्घ आयु , चिरंतंता पर रहता है। मतलब बांस के पोर्वे , चीड़ के पत्ते आडू के फूल यही सब होते हैं सजावट में। हाँ द्वार पर तोरण भी होता है, मूंज की रस्सी के
बीच में चीड़ के पत्ते या फूल लगा देते हैं, यह वर्ष चूहे का है सो मूषक राज भी खूब विराजमान रहे।
नववर्ष का सबसे प्रमुख उत्सव मन्दिर दर्शन होता है जिसका जापानी नाम है हात्सुमोदे।
हात्सू का अर्थ है प्रथम और मोदे का अर्थ है दर्शन । नववर्ष में हात्सुमोदे का पुण्य गंगा दशहरा को गंगा स्नान जैसा ही है। मैंने भी इस बार यह पुन्यलाभ प्राप्त किया है । समय मिला तो उसका कुछ अंश आपके संग भी बाँट
लूँगा।

एक बार पुनः नवसंवत्सर कि मंगलकामना
६-४-२००८




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